” माया ने परमात्मा को भी नहीं छोड़ा तो हम जैसे तुच्छ मनुष्य को कैसे छोड़ सकती है” श्रीराम कथा के आठवें दिन कथा व्यास ने सीता हरण का वर्णन किया।

धार्मिक हरिद्वार
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यह माया ही है जिसने परमात्मा को भी नहीं छोड़ा तो यह हम जैसे तुच्छ मनुष्य को कैसे छोड़ सकती है शिव मंदिर समिति सेक्टर 1 भेल रानीपुर हरिद्वार द्वारा आयोजित श्री राम जानकी कथा के आठवें दिवस की कथा मे कथा व्यास महंत प्रदीप गोस्वामी जी महाराज जी ने साधको को सीता हरण की कथा के दौरान कहा। उन्होंने कहा जब भरत खडाऊं लेकर अयोध्या लोटे,तब लोग भगवान राम ,सीता,लक्ष्मन को देखने व मिलने जाने लगे।तब भगवान राम वहां से ऋषि अत्रि एवं अनुसूईया के आश्रम पर पधारे। माता अनुसूईया राम भजन करते- करते बूढ़ी हो चुकी थी और पतिव्रत धर्म का पालन् करते हुए आश्रम मै निवास कर रही थी।भारत में पतिव्रता नारी की अनोखी ही कथा है अपने तप के बल पर ही ब्रम्हा,विष्णु,महेश(शंकर) जी के ऊपर जल छिडक कर् नवजात शिशु बना दिये थे ।आज जब राम ऋषि मुनि से मिले तो मुनि की खुशी का ठिकाना नही रहा तब मुनि ने सीता से कहा की कुटिया के अंदर जाओ और अनुसुईया से पतिव्रता धर्म पालन करने की शिक्षा लो। तब सीता जी माता अनुसुईया से मिल कर पतिव्रता धर्म की शिक्षा प्राप्त की और साथ में मैले ना होने वाले दो कुण्डल एवं दो साडी देकर माता अनुसुईया ने कह कि इन सभी के प्रताप से सीता तुम सदैव रूपवान रहोगी।
इस प्रकार मुनि और उनकी धर्मपत्नी अनुसुइया का आशीर्वाद पाकर राम, लक्ष्मण,सीता आगे बढ़े तथा एक ऐसे आश्रम पर गये जहां उन्होंने देखा कि एक मुनि सुतीक्षण बार-२ भगवान राम का कीर्तन कर के इधर उधर पागलो की तरह् घूम रहा है।ये सुतीक्षण अगस्त्य मुनि का शिष्यहै जो मुनि को दक्षिणा देने की जिद कर रहा था तब अगस्त्य मुनि जी इसको आश्रम से बाहर यह कहकर निकाल देते हैंं के तेरे को दक्षिणा ही देनी है तो भगवान राम को लाकर दो वही मेरी दक्षिणा होगी बस आज यह इसी का इंतजार कर रहा है सच्चे मन की भक्ति व दृढ़ विश्वास से भगवान को आना पड़ता है मुनि सुतीक्षण ही भगवान राम को लेकर मुनि अगस्त्य के आश्रम लेे गया तब अगस्त्य मुनि ने यहां पर ही भगवान राम को सभी अस्त्र-शस्त्र की दीक्षा दी और कहा की इन अस्त्रों और शस्त्रों के सहारे दुष्ट राक्षसों का संहार करोगे।मुनि से शिक्षा प्राप्त करने के बाद मुनि के कहने पर पंचवटी की तरफ प्रस्थान किया और वहीं पर कुटिया बनाकर रहने लगे।


कथा को आगे बढ़ाते हुए कथा व्यास जी ने सूपनखा और मारीच् की कथा सुनाते हुए कहा कि जब मारीच राम लक्ष्मण का ध्यान भटकाने के लिए सोने का मृग बनकर पंचवटी आया और श्री राम लक्ष्मण को अपने पीछे ले गया। यह कथा यह कहती है कि यह माया ही है जिसने परमात्मा को भी नहीं छोड़ा तो यह हम जैसे तुच्छ मनुष्य को कैसे छोड़ सकती है। इसका केवल एक ही उपाय है भगवान श्री राम की कथा का श्रवण और कीर्तन करना। जब श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण मारीच का पीछा करते हुए बहुत दूर जा पहुंचे उसी दौरान लंका पति रावण भेष बदलकर पंचवटी से माता सीता का हरण कर ले गया। पंचवटी से आगे बढ़ते हुए राम और लक्ष्मण शबरी के आश्रम पहुंचे इस तरीकेप्रेम के आगे भगवान नतमस्तक होकर झूठे बेर भी खाने के लिए तैयार हो गए गए शबरी कोई विशेष पूजा पाठ नहीं करती थी जो उसे साक्षात भगवान के दर्शन हुए वह तो केवल आने दृढ़ विश्वास के साथ जिस मार्ग से भगवान को आना था उसी को ही साफ किया करती थी कथा भाव यह था कि जिस मार्ग से भगवान श्री राम् आएंगे उस मार्ग मे एक भी पत्थर या कांटा ना रह जाये और मेरे राम् के पांव में चुभ जाये। जब शबरी को भगवान मिल सकते हैं जो मंत्रों का जाप भी नहीं करती थी तो हमे क्यो नहीं कथा व्यास जी ने कहा की भगवान के प्रति श्रद्धा भाव, भगवान के प्रति विश्वास और दृढ़ प्रतिज्ञा के नियम से भगवान की प्राप्ति हो सकती है।


कथा के मुख्य यजमान हरेंद्र मौर्य और ललिता मौर्य,ब्रिजेश शर्मा,जय प्रकाश,राकेश मालवीय,तेजप्रकाश,
अनिल चौहान,आलोक शुक्ला,होशियार सिंह,विष्णु समाधिया,महेश तिवारी,मानदाता,मोहित शर्मा,हरिनारायण त्रिपाठी,एल.डी.मेहता,संतोष कुमार, अशोक सिंगल,सुरेश पाठक,उदभव् मुकेश,अंकित गुप्ता,नीता सिंगल,अंजू शुक्ला लीना,अलका शर्मा, संतोष चौहान,सरला शर्मा,विभा गौतम,अनपूर्णा,राजकिशोरी मिश्रा,सुमन,कौशल्या,रेनु,बृजलेस(बबली)आदि लोग उपस्थित हुए।

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