हिन्दी सेवा समूह के तत्वावधान में  कवि- गोष्ठी एवं संगोष्ठी आयोजित।

शिक्षा हरिद्वार

हिन्दी सेवा समूह के तत्वावधान में  कवि- गोष्ठी एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिनकी  अध्यक्षता, डॉ० पुष्पा रानी वर्मा ( पूर्व उपनिदेशक : शिक्षा), मुख्य अतिथि,डॉ० वाजश्रवा आर्य(सचिव : उत्तराखण्ड संस्कृत शिक्षा परिषद), विशिष्ट अतिथि, डॉ० अरविन्दनारायण मिश्र ( असिस्टेंट प्रोफेसर : शिक्षाशास्त्र , उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय), संयोजक : डॉ०अशोक गिरि(संचालक ; हिन्दी सेवा समूह), सहसंयोजक : डॉ० सुशील त्यागी (प्रवक्ता : गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर) तथा संचालक : डॉ० विजय कुमार त्यागी (सहायक अध्यापक : बी० डी०माध्यमिक विद्यालय,भगवानपुर) थे। कार्यक्रम का शुभारम्भ मां सरस्वती और महान हिन्दी सेवक भारतरत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जी के चित्रों पर माल्यार्पण के पश्चात  शिविजय द्वारा प्रस्तुत सरस्वती – वन्दना से हुआ। संयोजकद्व द्वारा सभी का तिलक, ह्रदय फलक (badge) तथा पटके से स्वागत किया गया। सर्वप्रथम अपराजिता ने अपनी ओजस्वी रचना से सबका मन मोह लिया, अर्चना झा ने मधुर कण्ठ से अपना गीत प्रस्तुत किया, डॉ० अशोक गिरि ने अपने मुक्तकों के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों पर गहरा प्रहार किया। डॉ० सुशील त्यागी ने सामयिक रचना ‘बादल’ प्रस्तुत की। डॉ० मीरा भारद्वाज डॉ० ने शिव एवं गंगा को समर्पित रचना प्रस्तुत की। प्रशान्त कौशिक ने श्रृंगार रस की रचना प्रस्तुत की। डॉ० विजय कुमार त्यागी ने अपनी कविता के माध्यम से मां सरस्वती से समूह पर कृपा बनाए रखने की प्रार्थना की।डॉ० अरविन्दनारायण मिश्र ने अपनी रचना के माध्यम से,मां गंगा में व्याप्त प्रदूषण पर गम्भीर चिंता व्यक्त की। डॉ० वाजश्रवा आर्य ने हिन्दी सेवा समूह की मुक्त हृदय से प्रशंसा की तथा भविष्य में संयुक्त रूप से कार्यक्रम करने की बात कही। डॉ० पुष्पा रानी वर्मा ने सभी की रचनाओं की समीक्षा करते हुए ; अपनी कविता के माध्यम से कांवड़- यात्रा का सुन्दर वर्णन किया। कार्यक्रम में सितम्बर माह में आयोजित होने वाले ‘हिन्दी समारोह’ की रूपरेखा पर भी विचार – विमर्श हुआ । इस बार समारोह में गत वर्ष के कार्यक्रमों के अतिरिक्त  ‘ हिन्दी सेवा सम्मान ‘ , पुस्तक – विमोचन तथा उत्कृष्ट हिन्दी विचार/कथन/प्रचार- वाक्य को पुरस्कृत किया जाएगा। कार्यक्रम में”मैं पुष्प बनना चाहता हूँ, मेरी कोमलता बन जाओ। मैं कवि बनना चाहता हूँ, मेरी कविता बन जाओ।।”                 – डॉ० वाजश्रवा। “कितना भूलते हैं लोग, कितना बदलते हैं लोग। जिन्हें हम समझे थे हीरा, कोयला निकले वे लोग।।”  – डॉ० अशोक गिरि।       “जीवन राग सुनाते बादल, फिर से मिलने आए बादल। प्यास बुझा लो अपनी -अपनी, सबको बस समझाते बादल।।” – डॉ० सुशील त्यागी ।  ” नदी नहीं मैं मां गंगा हूं, जाने कितनी संस्कृतियों को जन्मा मैंने पाला पोसा।—– मैं गंगा हूँ।” – डॉ० अरविन्दनारायण मिश्र।  ” हरिद्वार के गंगा तट पर, कांवड़ियों का फेरा है। भोले के रंग में रंगा हुआ,हर भक्त बड़ा अलबेला है।।” डॉ० पुष्पा रानी वर्मा ने सुंदर प्रस्तुति दी। इस अवसर पर दीपशिखा त्यागी, अनिता त्यागी , प्रमोद वर्मा ,संजय  भारद्वाज तथा प्राची ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।

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