द्वितीय केदार के नाम से विश्व विख्यात भगवान मद्महेश्वर के कपाट वेद ऋचाओं व मंत्रोच्चारण के साथ खोल दिए गए हैं। इस मौके पर 667 तीर्थ यात्री कपाट खुलने के साक्षी बने। साथ ही पूजा-अर्चना और जलाभिषेक कर विश्व शांति व समृद्धि की कामना की। भगवान मद्महेश्वर के कपाट खुलते ही यात्रा पड़ावों पर रौनक लौटने लगी है।
आज 21 मई को ब्रह्म बेला पर गौंडार गांव में मदमहेश्वर या मद्महेश्वर धाम के प्रधान पुजारी शिवलिंग ने पंचांग पूजन के तहत अनेक पूजाएं संपन्न कर भगवान मदमहेश्वर समेत तैंतीस कोटी देवी-देवताओं का आह्वान किया। जिसके तहत सुबह 5 बजे भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली का भव्य श्रृंगार कर आरती उतारी गई. फिर भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली गौंडार गांव से कैलाश के लिए रवाना हुई।

भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली के कैलाश रवाना होने पर गौंडार गांव समेत विभिन्न यात्रा पड़ावों पर भक्तों ने पुष्प, अक्षत्रों से अगुवाई की. साथ ही लाल-पीले वस्त्र अर्पित कर लोगों ने मनौतियां मांगी. भगवान मदमहेश्वर की डोली ने विभिन्न यात्रा पड़ावों पर भक्तों को आशीर्वाद देते देव दर्शनी पहुंचकर विश्राम किया। सुबह 11 बजे मदमहेश्वर धाम के मदन सिंह पंवार और विशाम्बर पंवार ने धाम से शंख ध्वनि देकर डोली को धाम आने का निमंत्रण दिया। जिस पर डोली धाम के लिए रवाना हुई। भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली ने धाम पहुंचकर मुख्य मंदिर की तीन परिक्रमा की, साथ ही सहायक मंदिरों में शीश नवाया। वहीं, भगवान मद्महेश्वर के कपाट वेद ऋचाओं और मंत्रोच्चार के साथ ठीक 11:10 बजे ग्रीष्मकाल के लिए खोल दिए गए. कपाट खुलने के बाद पंडित कलाधर सेमवाल ने परंपरानुसार शुद्धिकरण यज्ञ किया. जबकि, सैकड़ों भक्तों ने भगवान मदमहेश्वर के स्वयंभू लिंग पर जलाभिषेक कर सुख समृद्धि की कामना की। कपाट खुलने के पावन अवसर पर जागर गायिका रामेश्वरी भट्ट के नेतृत्व में विलोचना रावत, मीना बहुगुणा, हेमलता बिष्ट, सुशीला भंडारी, लक्ष्मी नेगी ने भगवान मदमहेश्वर की महिमा पर आधारित पौराणिक जागरों की शानदार प्रस्तुत दी।
कपाटोद्घाटन की पूर्व संध्या पर मदमहेश्वर मुख्य मंदिर समेत सहायक मंदिरों को छह कुन्तल फूलों से भव्य रूप से सजाया गया। श्रद्धालु 14 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर भगवान मदमहेश्वर के दरबार में पहुंच रहे हैं। भगवान मदमहेश्वर की यात्रा हर वर्ष मई माह में कपाट खुलने के साथ शुरू होती है और शीतकाल में पूजा ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ में सम्पन्न होती है।
