भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है; प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव: आचार्य रामानंद दुबे
शिवालिक नगर, शिव मंदिर में द्वादश ज्योतिर्लिंग प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव अनुष्ठान जारी
हरिद्वार। श्री शिव मंदिर समिति (रजि) शिवालिक नगर के तत्वावधान में चल रहे द्वादश ज्योतिर्लिंग प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव अनुष्ठान के मुख्य आचार्य पंडित रामानंद दूबे ने प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव, अनुष्ठान का महत्व बताते हुए कहा कि सनातन धर्म में मुर्तिय़ों की प्राण प्रतिष्ठा का बहुत ज्यादा महत्व है। इसके बिना मुर्ति पत्थर मानी जाती है। वहीं प्राण प्रतिष्ठा होने के उपरांत पत्थर भी भगवान के रूप में पूजे जाते हैं। प्राण प्रतिष्ठा के लिए शुभ मुहूर्त का निर्धारण अनिवार्य है।


गौरतलब है कि श्री शिव मंदिर समिति (रजि.) शिवालिक नगर के तत्वावधान में शिव मंदिर परिसर में पांच दिवसीय द्वादश ज्योतिर्लिंगों की प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव अनुष्ठान का आयोजन चल रहा है। ऐसे में मंगलवार, को आयोजन के दूसरे दिन मुख्य आचार्य पंडित रामानंद दूबे के नेतृत्व में नित्य पूजन के उपरांत अग्नि स्थापन, ग्रह-प्रधानादि आवाहन और कर्म कुटीर संस्कार संपन्न कराया गया। वहीं तीसरे दिन बुधवार को नित्य पूजन के साथ जलाधिवास अन्नाधिवास प्रसाद वास्तु, होमादि प्रसाद स्नपन संपन्न होगा। इस मौके पर आचार्य पंडित रामानंद दुबे ने कहा कि शिवलिंग प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ है शिवलिंग में भगवान शिव की दिव्य ऊर्जा का संचार करना, जिससे वह उनकी ब्रह्मांडीय उपस्थिति का जीवंत अवतार बन जाता है। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि यह अनुष्ठान कई दिनों तक चलता है और इसमें कई तरह के धार्मिक क्रिया-कलाप शामिल होते हैं, जो शिवलिंग में भगवान शिव की दिव्य ऊर्जा को स्थापित करने में मदद करते हैं। पं रामानंद दुबे ने कहा कि किसी भी मूर्ति की स्थापना के समय प्रतिमा रूप को जीवित करने की विधि को प्राण प्रतिष्ठा कहा जाता है। ‘प्राण’ शब्द का अर्थ है- जीवन शक्ति और ‘प्रतिष्ठा’ का अर्थ स्थापना से माना जाता है। ऐसे में प्राण-प्रतिष्ठा का अर्थ है, जीवन शक्ति की स्थापना करना अथवा देवता को जीवन में लाना है। मूर्ति स्थापना के समय प्राण प्रतिष्ठा जरूर किया जाता है। मंदिरों में जब मूर्तियां लायी जाती हैं, तो वे केवल पत्थरों की होती हैं लेकिन प्राण-प्रतिष्ठा कर उन्हें जीवंत बनाया जाता है, जिससे वे केवल मूर्तियां न रह जायें, बल्कि उनमें भगवान का वास हो। प्राण-प्रतिष्ठा के बिना कोई भी मूर्ति मंदिर में स्थापित नहीं होती है। प्राण-प्रतिष्ठा के लिए देवी या देवता की अलौकिक शक्तियों का आह्वाहन किया जाता है, जिससे कि वो मूर्ति में आकर प्रतिष्ठित यानी विराजमान हो जाते हैं। इसके बाद वो मूर्ति जीवंत भगवान के रूप में मंदिर में स्थापित होती है। उन्होंने कहा कि प्राण-प्रतिष्ठा के कारण ही कहा जाता है कि एक पत्थर भी ईश्वर का रूप धारण कर सकता है। मान्यता है कि प्राण प्रतिष्ठित किये जाने के बाद खुद भगवान उस प्रतिमा में उपस्थित हो जाते हैं। श्री शिव मंदिर समिति के महासचिव शशि भूषण पांडेय ने बताया कि संरक्षक संजीव गुप्ता, यशपाल सिंह चौहान, वृन्दावन बिहारी, ललता प्रसाद, अध्यक्ष अनिल कुमार माथुर, उपाध्यक्ष अशोक कुमार मेहता, सचिव रामव्रत सिंह कुशवाहा, सचिव श्री रामकुमार, चौहान, सचिव हरिराम कटिहार संयुक्त सचिव ओंकार नाथ कोषाध्यक्ष पवन कुमार सक्सेना एवं जय ओम गुप्ता और राजीव शर्मा सहित अन्य सदस्यगण कार्यक्रम को सफल बनाने में लगातार प्रयास में जुटे हैं ।


