विचारणीय है कि वाराणसी में छोटी-छोटी गलियाँ होने एवं माँ गंगा जी के घाटों से मन्दिर तक आवागमन की सुविधा न होने के कारण कॉरीडोर आवश्यक था ।
जबकि हरिद्वार में हरकी पौड़ी पर आने के लिए पूर्व से ही निम्न मार्ग चले आते हैं-
अपर रोड, मोती बाजार, बड़ा बाजार, सुभाष घाट।
रोड़ी बेलवाला से हरकी पौड़ी तक लोहे से बने 4 सेतु
सीसीआर से हरकी पौड़ी आने वाला शिव सेतु
सीसीआर से आने वाला शताब्दी सेतु भीमगोडा से हरकी पौड़ी मुख्य मार्ग अर्द्धकुम्भ 2004 में जयराम आश्रम से कांगड़ा घाट होते हुए हरकी पौड़ी तक निर्मित घाट ।
पन्तद्वीप से मालवीय द्वीप घंटाघर हरकी पौड़ी पर बने सेतु ।
*मेरे विचार में :-*
मालवीय द्वीप का विस्तार पंतद्वीप तक किया जाए ,गंगा जी के दोनों और घाटों का निर्माण किया जाये, पूर्व निर्मित पंतद्वीप से मालवीय द्वीप तक बने पुल को हटा दिया जाये। ऐसा करने से निर्विरोध आवागमन हो सकेगा ।
न्यू सप्लाई चैनल (N.S.C.) से हरकी पौड़ी तक आ रहे गंगाजल की होने वाली कमी को दूर करने के लिए उसके स्थान पर श्मशान घाट खड़खड़ी के आगे से आ रही पुरानी अविच्छिन्न धारा (O.S.C.) से जलापूर्ति की मात्रा बढाकर 40-50 वर्ष पूर्व की भांति की जाए।
मालवीय द्वीप पर आरती दर्शन के लिए दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ाने के एक डबल स्टोरी कवर्ड दर्शनीय स्थल बनाकर बैठने की व्यवस्था की जाए, ऐसा होने से आरती दर्शन के दर्शनार्थियों की संख्या दोगुनी से अधिक हो जाएगी। साथ ही मालवीय द्वीप में भी धूप से यात्रियों का बचाव हो सकेगा ।
उत्तराखंड सरकार का हर की पैड़ी क्षेत्र में काॅरिडोर निर्माण का इरादा सामने आने के साथ ही यह विवादास्पद विषय बन गया। बनना भी चाहिए। इसके तीन महत्वपूर्ण कारण हैं। एक हरिद्वार नगर का और विशेषकर हर की पैड़ी क्षेत्र का पौराणिक महत्व। दूसरा गंभीर मुद्दा है काॅरिडोर निर्माण कार्य के लिए बहुत बड़े क्षेत्र से आवासीय एवं व्यवसायिक प्रतिष्ठानों का विस्थापन। परेशानी का तीसरा कारण है बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के ठहरने का मुद्दा।
हरिद्वार शहर एक संकरे गलियारे के समान है। एक तरफ गंगा की धारा है। दूसरी तरफ शिवालिक पहाड़ियों की श्रंखला है। इस कारण शहर का विस्तार करने की संभावनाएं बहुत ही सीमित रहीं हैं। इस कारण धीरे-धीरे शहर की आबादी बहुत ही सघन होती चली गई। पचास के दशक में हरिद्वार क्षेत्र में भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड की औद्योगिक इकाई स्थापित की गई। धीरे-धीरे इस इकाई का विस्तार हुआ एवं आसपास के अनेकों गांव की खेती योग्य ज़मीन एवं बाग-बगीचे आवासीय एवं सिडकुल स्थापना में खप गए।परिणाम स्वरूप हरिद्वार नगर पालिका को अब नगर निगम का दर्जा मिल चुका है।
सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा निर्मित DPR (Detail Project Report) के अनुसार इस काॅरिडोर निर्माण योजना में शहर का दस किलोमीटर लंबा क्षेत्र सप्तश्रषि, हरिद्वार, ज्वालापुर एवं कनखल प्रभावित होगा। इस कारण नगरवासी एवं व्यवसायी वर्ग समान रूप से विचलित एवं चिंतित है। बहुत छोटे रेहड़ी-पटरी, खोमचा लगा कर या फूल आदि बेच कर अपनी रोजी-रोटी कमाने वाले श्रमिक भी विस्थापन से ख़ासे परेशान हैं।
भाजपा की स्थानीय राजनीतिक मंडली ने कभी भी नगरवासियों को वस्तु स्थिति से अवगत नहीं कराया है। इस कारण नगरवासी आहत एवं क्रोधित भी हैं। आगामी नगर निगम चुनाव बहुत ही निर्णायक सिद्ध हो सकते हैं। यदि नगरवासियों ने अपने रोष को मतपत्र में लपेट स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हमारा देश विकास के हर क्षेत्र में अभावग्रस्त था। कृषि प्रधान देश में ही खेती घाटे का धंधा था। सिंचाई का समुचित प्रबंध न होने से किसान एवं गांवों की स्थिति दयनीय थी। स्कूल, कालिज एवं गरीबी के कारण देश की आधी से ज्यादा आबादी अनपढ़ थी। चिकित्सा सुविधा केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित थी वगैरा, वगैरा।
देश में संविधान की स्थापना के पश्चात् मूलभूत सुविधाओं को रेखांकित किया गया। सभी क्षेत्रों का समयबद्ध विकास सुनिश्चित करने के लिए विद्वान एवं विशेषज्ञ नागरिकों की सहायता से पंचवर्षीय योजनाओं की रूप रेखा तैयार की गई। मुख्यतः कृषि, शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
पंचवर्षीय योजनाओं के क्रियान्वित करने के परिणाम धीरे-धीरे सामने आने लगे। राजनीति में स्थायित्व आया एवं विदेशों में हमारे देश की पहचान उभरने लगी। विदेशी आर्थिक सहायता के दरवाजे खुले। उस समय के नेतृत्व ने देश की आबादी को शिक्षित करने की नीति को बहुत अधिक महत्व दिया। गरीबी के कारण वंचितों को लगभग निशुल्क शिक्षा प्रदान करने के लिए सरकारी क्षेत्र में व्यापक धन मुहैया किया गया। पूरे देश में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए गांव, ब्लाक, जनपद एवं प्रदेश स्तर पर स्कूल, कालिज एवं विश्व विद्यालय स्थापित किए गए। कुछ ही वर्षों में आशातीत सफलता सामने आई। स्वतंत्रता पूर्व एवं पश्चात् जहां उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेश जाना पड़ता था, धीरे-धीरे भारतीय शिक्षक, चिकित्सक, वैज्ञानिक एवं कुशल श्रमिकों की विदेशों में मांग बढ़ने लगी। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती के साथ-साथ विकास की गतिशीलता भी बढ़ गई: समय परिवर्तन के अनुसार आर्थिक सुधारों की आवश्यकता समझी गई। स्व॰ प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव एवं तत्कालीन वित्त मंत्री स्व॰ मनमोहन सिंह जी के कुशल नेतृत्व में अर्थव्यवस्था का उदारीकरण एवं निजी क्षेत्र में सीमित भागीदारी के विकल्प क्रियान्वित किए गए। परिणाम स्वरूप देश की आर्थिक प्रगति को धार मिली लेकिन निजीकरण को सीमित क्षेत्रों तक आगे बढ़ाया गया। स्व॰ अटल बिहारी वाजपेयी जी के कार्यकाल में भी आर्थिक स्थिति संतोषजनक एवं पारदर्शिता कायम रही। स्व॰ मनमोहन सिंह जी के दस वर्षों का प्रधानमंत्रित्व काल देश के इतिहास में उल्लेखनीय आर्थिक सुधारों में योगदान के लिए विशेषकर चिन्हित किया जाएगा।
. वर्ष 2014 में सत्ता परिवर्तन एवं मोदी जी के दस वर्षों के प्रधानमंत्री काल में स्थितियां बहुत कुछ बदल गईं। निजीकरण की रफ्तार बहुत तेज हो गई। पार्दर्शिता क्षीण हो गई। बड़े-बड़े दावे और वायदे किए जाते हैं। लेकिन संतुलित एवं संतोषजनक परिणाम सामने नहीं आते। फलतः अर्थव्यवस्था एवं राजनीति दोनों में अस्थिरता का समावेश हुआ है। लोकसभा में भाजपा की शक्ति कम हुई है। मंहगाई बढ़ी है, बेरोज़गारी बेकाबू है लेकिन सरकार फिर भी आमजन के सरकारों से आश्चर्यजनक रूप से विचलित नज़र नहीं आ रही है।
. हमारी प्रदेश सरकार के द्वारा हरिद्वार के जगजीत पुर क्षेत्र में खुलने जा रहे नगर निगम की अरबों की बेशकीमती 500 बीघा जमीन जो जनता के हितों के लिए थी उस पर राजकीय मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल को सरकारी 500 बीघा ज़मीन पर पी०पी०पी० मोड में खोलने का निराशाजनक फैसला सामने आया है। भोजन, चिकित्सा, आवास एवं शिक्षा नागरिकों के मूलभूत अधिकार क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज को खोले जाने के लिए दी गई है, ना कि निजीकरण कर अरबो रुपए इकट्ठा करने को संगठित विरोध प्रदर्शन जारी रखे जाने चाहिएं। हरिद्वार नगर निगम के चुनावों में मेडिकल कॉलेज के मुद्दे को विशेष स्थान दिया जाना चाहिए। इस मुद्दे के कारण भाजपा निगम चुनाव हार सकती है और फैसला पलटना भी आसानी से संभव हो सकता है।