चमोली जिले की उर्गम घाटी में स्थित बंशीनारायण मंदिर वर्षभर में केवल रक्षाबंधन के दिन खुलता है। रक्षाबंधन के दिन मंदिर में क्षेत्र की महिलाएं भगवान नारायण को रक्षासूत्र बांधकर पूजा अर्चना करती हैं।
इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि रक्षाबंधन के दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक इस मंदिर के कपाट खुलते हैं। इसके बाद अगले एक साल के लिए फिर से मंदिर बंद हो जाता है। रक्षाबंधन के दिन मंदिर खुलते ही कुंवारी कन्याओं और विवाहित महिलाएं भगवान वंशीनारायण को राखी बांधने लगती है।
वंशी नारायण से जुड़ी पौराणिक कथा
वंशी नारायण मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा काफी प्रचलित है। इसके अनुसार, राजा बलि के अहंकार को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण किया था और बलि के अहंकार को नष्ट करके पाताल लोक भेज दिया। जब बलि का अहंकार नष्ट हुआ तब उन्होंने नारायण से प्रार्थना की थी कि वह भी मेरे सामने ही रहे। ऐसे में श्री हरि विष्णु पाताल लोक में बलि के द्वारपाल बन गए थे। लंबे समय तक जब विष्णु जी वापस नहीं लौटे तो मां लक्ष्मी भी पाताल लोक आ गई और बलि की कलाई पर राखी बांधी और प्रार्थना की कि वह भगवान विष्णु को पाताल लोक से जाने दें। इसके बाद राजा बलि ने बहन लक्ष्मी की बात मानकर विष्णु जी को वचन से मुक्त कर दिया। कहा जाता है कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु पाताल लोक से धरती पर प्रकट हुए थे। तब से रक्षाबंधन के दिन इस जगह को वंशी नारायण के रूप में पूजा जाने लगा।