उत्तराखंड के द्वितीय केदार  मध्यमहेश्वर की डोली ऊखीमठ से रवाना हुई, जाने मध्यमहेश्वर के बारे में कुछ तथ्य।

चार धाम यात्रा धार्मिक
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आज शाम राँसी के माँ राकेश्वरी मंदिर में पहुंचने के बाद रात्रि विश्राम होगा, 19 मई को डैली मध्य महेश्वर धाम पहुंचेगी,20 मुख्य को प्रातः खुलेंगे कपाट। उत्तराखंड में स्थित पंचकेदार में से एक मदमहेश्वर या फिर कहें मध्य महेश्वर की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. पंच केदार में इसे दूसरे केदार के रूप में पूजा जाता है. देवों के देव महादेव का यह मंदिर उत्तराखंड के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है, जिसकी हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा मान्यता है
पंचकेदार में से एक मदमहेश्वर या फिर कहें मध्य महेश्वर की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. पंच केदार में इसे दूसरे केदार के रूप में पूजा जाता है. देवों के देव महादेव का यह मंदिर उत्तराखंड के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है, जिसकी हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा मान्यता है क्योंकि यहां पर भगवान शिव के बैल स्वरूप की नाभि की पूजा का विधान है. मान्यता है कि इस मंदिर को महाभारतकाल में पांडवों द्वारा बनवया गया था.
मदमहेश्वर मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में चौखम्बा पर्वत की तलहटी पर स्थित है. जहां पर जाने के लिए ऊखीमठ से कालीमठ और फिर वहां से मनसुना गाँव होते हुए 26 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है.
उत्तराखंड के पंचकेदार में भगवान शिव के पांच अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. भोले के भक्त केदारनाथ में बैलरूपी शिव के कूबड़ की, तुंगनाथ में भुजाओं की, रुद्रनाथ में मस्तक की, मदमहेश्वर में नाभि की और कल्पेश्वर में जटाओं की पूजा करके पुण्यफल प्राप्त करते हैं.
हिंदू मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति मदमहेश्वर मंदिर में जाकर भगवान शिव की नाभि का दर्शन और पूजन करता है, उस पर महादेव की असीम कृपा बरसती है, जिसके पुण्य प्रभाव से वह सुखी जीवन जीता हुआ अंत में शिवलोक को प्राप्त करता है.
हिंदू मान्यता के अनुसार प्रकृति की गोद में बसे इसी मंदिर कभी महादेव और माता पार्वती ने रात्रि बिताई थी. मदमहेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा के लिए दक्षिण भारत के लिंगायत ब्राह्मण पुजारी के रूप में नियुक्त होते हैं।

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