“भगवान श्री राम का वनवास जगत के कल्याण के लिए हुआ था ” कथा व्यास महंत प्रदीप गोस्वामी, छठवें दिन सुनाई राम वन गमन की कथा ।

धार्मिक हरिद्वार
Listen to this article


शिव मंदिर समिति सेक्टर 1 के द्वारा आयोजित श्री राम जानकी कथा के छठवें दिवस की कथा में कथा व्यास महंत श्री प्रदीप गोस्वामी जी महाराज जी ने राम वन गमन की कथा सुनाई। कथा का विस्तार करते हुए कहा कि आज राजा दशरथ दर्पण देखकर आश्चर्यचकित हो गए कि मेरे बाल सफेद हो गए हैं तो मुझे राजपाट का त्याग करके भगवान की अराधना करनी चाहिए तथा यह सांसारिक व्यक्तियों को भी संदेश है कि जब बाल सफेद होने लगे तब घर की सभी जिम्मेदारी अपने पुत्रों पर छोड़ कर भगवान की कथा सुननी चाहिए अर्थात भगवान् में लीन हो जाना चाहिए। अतः गुरु वशिष्ठ से परामर्श करके भगवान राम जी का राजतिलक करने की योजना बनाई लेकिन यह बात दो व्यक्तियों को अच्छी नहीं लगी पहली देवताओं को तथा दूसरी स्वयं श्री राम जी को। कथा कहती है कि देवताओं ने सोचा कि यदि भगवान राम का राजतिलक हो गया तो राक्षसों का विनाश कैसे होगा।

भगवान राम सोच रहे थे कि जब सभी भाई एक साथ पैदा हुए एक साथ खेलें एक साथ बड़े हुए और एक ही साथ सभी का विवाह हुआ तो मेरा ही राज तिलक क्यो हो रहा है। तब देवताओं ने सरस्वती माता से प्रार्थना की कि आप इस कार्य में हमारी सहायता करें और अयोध्या जाकर दासी मंथरा की बुद्धि फेर दीजिए तथा देवताओं का कार्य पूर्ण करिये। देवताओं की यह बात सुनकर मां सरस्वती ने यही किया।अर्थात् मंथरा की बुद्धि को फेर दिया।फिर मंथरा दासी ने रानी केकई की बुद्धि को फेर दिया।मंथरा से प्रेरित हो कर रानी केकई ने राजा दशरथ से दो वर मांग लिऐ – पहला वर राम के लिए 14 वर्ष का वनवास ओर दूसरा वर अपने पुत्र भरत के लिए राजगद्दी मांगी।
और वहीं पहले बचपन मे हीं राम ने केकई से ये वरदान ले लिया था कि हे माते जब मेरा राजतिलक हो रहा होगा तब आप मेरा राजतिलक ना होने देने कि कृपा करना लेकिन इस बात को रानी कैकई नही मानी थी क्योकि कैकई भरत से ज्यादा राम को स्नेह करती थी अपना दूध पिलाती थी लेकिन जब राम ने माता को अपना परिचय दिया कि मे हीं जगत पिता परमेश्वर हुं ,मैं ही जगत का पालन हार हूं तब केकई ने कहा कि है राम मैं आपके लिए सब कुछ करूंगी लोग मुझे अच्छी निगाह से नहीं देखेंगे मेरा कोई नाम भी नहीं रखेगे लेकिन कथा कहती है कि ईश्वर का कार्य समर्पण के साथ करना चाहिए चाहे जग मे उसकी निंदा ही क्यों ना हो इसका चिंतन नहीं करना चाहिए। भगवान राम सीता संग् लक्ष्मण वनवास कि कथा ये संदेश देती है यदि इनका वनवास नहीं होता तो रामचरित्र मानस कि रचना कैसे होती कैसे घर -घर मे राम पूज्य बनते ।अर्थात भगवान श्री राम का वनवास जगत के कल्याण के लिए हुआ था क्योंकि जो ज्ञान वनवास में मिलता है वह कहीं पर ,किसी भी स्थान पर प्राप्त नहीं हो सकता ।


कथा के मुख्य यजमान हरेंद्र मौर्य और ललिता मौर्य,ब्रिजेश शर्मा,जय प्रकाश,राकेश मालवीय,तेजप्रकाश,
अनिल चौहान,आलोक शुक्ला,होशियार सिंह,विष्णु समाधिया,महेश तिवारी,मानदाता,मोहित शर्मा,हरिनारायण त्रिपाठी,
एल.डी.मेहता,संतोष कुमार,अशोक सिंगल,सुरेश पाठक,उदभव् मुकेश,अंकित गुप्ता,नीता सिंगल,अंजू शुक्ला लीना,अलका शर्मा,
संतोष चौहान,सरला शर्मा,अनपूर्णा,राजकिशोरी मिश्रा,सुमन,कौशल्या,रेनु,बृजलेस(बबली)आदि लोग उपस्थित हुए।

Leave a Reply

Your email address will not be published.