श्री राम जानकी कथा  में कथा व्यास  गोस्वामीजी ने रामभक्तों को को श्री राम और माता जानकी के विवाह की कथा सुनाई ।

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शिव मंदिर समिति सेक्टर वन के द्वारा आयोजित श्री राम जानकी कथा के चौथे दिवस की कथा मै कथा व्यास महंत प्रदीप गोस्वामी ने महाराज जी ने साधक को श्री राम जानकी विवाह की कथा सुनाई ।कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जब भगवान बालक के रूप में थे तो घर से बाहर खेलने के लिए जाते थे तब चारों भाई जब खेलते थे तब राम वैसे तो खेल में जीत जाते थे लेकिन बाद में जान बूझकर हार जाते थे क्योंकि भगवान श्री जीत का श्रेय अपने भाइयों को देना चाहते थे । बस यही राम कथा की मर्यादा है जो भाइयों में प्रेम सिखाती है जो बड़े छोटे का भेद बताती है थोड़े और बड़े होने पर चारों भाइयों को विद्या प्राप्त करने के लिए गुरु कुल में भेजा जाता है। जहां पर सभी को यह शिक्षा दी जाती है कि सबसे पहले प्रात काल उठकर माता पिता और गुरु के चरणों की वंदना करनी चाहिए उनके द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए
आर्यव्रत(भारत) की संस्कृति कैसी है यह गुरुकुल में रहकर ही सिखाया जाता था। लेकिन बड़े दुख का विषय है कि आज देश में संस्कृति नहीं सिखाई जाती आपितु अंग्रेजी बोल कर धन कमाने का माध्यम सिखाया जाता है यदि संस्कृति ही नहीं बचेगी तो यह भारतवर्ष कैसे बच पाएगा यदि अपनी संस्कृति को बचाना है तो सपरिवार श्री राम कथा का श्रवण करना आवश्यक हैै। कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए व्यास जी ने कहा की ऋषि मुनि विश्वामित्र जी राजा दशरथ से राम व लक्ष्मण को राक्षसों का सफाया करने के लिए मांगने आते हैंं और श्री राम और लक्ष्मण जी मिलकर उन राक्षसों का सफाया करते हैं जो ऋषि-मुनियों को परेशान किया करते थे। तथा शीला बनी अहिल्या का उद्धार करते है
आज जनकपुर से निमंत्रण पर विश्वामित्र राम लक्ष्मण के संग जनक पुर जाते हैं तथा वहां जाकर वाटिका में फूल लाते समय जानकी वह भगवान राम का प्रथम मिलन होता हैै अर्थात् भगवान का भक्ति के साथ मिलन होता कि जब माता सीता माता पार्वती के मंदिर पूजा करने जाती है तब माता से यही कहती है कि मेरे पति भगवान श्रीराम हो आज माता गिरिजा अर्थात पार्वती भी सीता से कहती है कि तू चिंता मत कर जैसे राम ने मुझे मेरे पति से मिलाया था उसी प्रकार आज वह अवसर आ गया है कि मैं भी तुमको राम से मिलाकर अपना वचन पूरा करूंगी। जैसे ही सीता जी ने माता के आगे अपना शीश झुकाया उसी वक्त माता की पहनी हुई माला सीता के गले में आकर पड़ गई। अर्थात् माता पार्वती की स्वीकृति प्रदान हो गई।ओर स्वयंवर में राम ने शिव धनुष तोड़ कर सीता के साथ विवाह किया और बड़े ही धूमधाम के साथ मां जानकी और श्री राम जी का विवाह बड़े ही हर्षोल्लास के साथ शिव मंदिर मे मनाया गया।
कथा के मुख्य यजमान हरेंद्र मौर्य और ललिता मौर्य,ब्रिजेश शर्मा,जय प्रकाश,राकेश मालवीय,तेजप्रकाश,
अनिल चौहान ,सुनील चौहान,होशियार सिंह,विष्णु समाधिया,महेश,मानदाता,मोहित शर्मा,हरिनारायण त्रिपाठी,दिलीप गुप्ता,
एल.डी.मेहता,संतोष तिवारी,अशोक सिंगल,सुरेश पाठक,नीता सिंगल,
लीना,अलका शर्मा,संतोष चौहान,
सरला शर्मा,अनपूर्णा,राजकिशोरी मिश्रा,सुमन,कौशल्या,रेनु,बृजलेस आदि लोग उपस्थित हुए।
कथा का समय:-शाम 3 बजे से 7 बजे
तक।

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