श्री सनातन ज्ञान पीठ शिव मंदिर सेक्टर 1 समिति द्वारा आयोजित श्री शिव महा पुराण कथा के पांचवे
दिवस की कथा का शुभारंभ करते हुए कथा व्यास उमेश चंद्र शास्त्री महाराज ने श्रोताओ को सती कथा सुनाई।महाराज श्री ने बताया की दक्ष प्रजापति की सभी पुत्रियां गुणवती थीं। फिर भी दक्ष के मन में संतोष नहीं था। वे चाहते थे उनके घर में एक ऐसी पुत्री का जन्म हो, जो सर्व शक्ति-संपन्न हो एवं सर्व विजयिनी हो।अत: दक्ष एक ऐसी ही पुत्री के लिए तप करने लगे।तप करते-करते अधिक दिन बीत गए, तो भगवती आद्या ने प्रकट होकर कहा, ‘मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूं। तुम किस कारण तप कर रहे हो? दक्ष ने तप करने का कारण बताया तो मां बोली मैं स्वयं पुत्री रूप में तुम्हारे घर जन्म लूँगी मेरा नाम सती होगा।फलतः भगवती आद्या ने सती रूप में दक्ष के यहां जन्म लिया। सती दक्ष की सभी पुत्रियों में सबसे अलौकिक थीं। सती ने बाल्यावस्था में ही कई ऐसे अलौकिक आश्चर्य चकित करने वाले कार्य कर दिखाए थे, जिन्हें देखकर स्वयं दक्ष को भी विस्मय होता था।जब सती विवाह योग्य हुई, तो दक्ष को उनके लिए वर की चिंता हुई। उन्होंने ब्रह्मा जी से परामर्श किया। ब्रह्मा जी ने कहा, ‘सती आद्या का अवतार हैं।सती के विवाह के लिए शिव ही योग्य और उचित वर हैं।द्क्ष ने ब्रह्मा जी की बात मानकर सती का विवाह भगवान शिव के साथ कर दिया।सती कैलाश में जाकर भगवान शिव के साथ रहने लगीं। यद्यपि भगवान शिव के दक्ष के जामाता थे,किंतु एक ऐसी घटना घटी जिसके कारण दक्ष के हृदय में भगवान शिव के प्रति बैर और विरोध पैदा हो गया।घटना इस प्रकार थी— एक बार ब्रह्मा ने धर्म के निरूपण के लिए एक सभा का आयोजन किया था। सभी बड़े-बड़े देवता सभा में एकत्र थे।भगवान शिव भी एक ओर बैठे थे। सभा मण्डल में दक्ष का आगमन हुआ। दक्ष के आगमन पर सभी देवता उठकर खड़े हो गए, पर भगवान शिव खड़े नहीं हुए। उन्होंने दक्ष को प्रणाम भी नहीं किया। फलतः दक्ष ने अपमान का अनुभव किया। केवल यही नहीं, उनके हृदय में भगवान शिव के प्रति ईर्ष्या की आग जल उठी।वे उनसे बदला लेने के लिए समय और अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। भगवान शिव को किसी के मान और किसी के अपमान से क्या मतलब? वे तो समदर्शी हैं।भोले है उन्हें तो चारों ओर होता ही दिखाई पड़ता है। जहां अमृत होता है, वहां कडुवाहट हो ही नही सकती एक बार प्रजापति दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उसमें अपने पुत्री सती और जामाता शिव जी को निमंत्रण नहीं दिया।पति आदेश के बीना माता सती उस यज्ञ में जा पहुंची। अपनी पुत्री को वहां देखकर दक्ष ने अपेक्षा के भाव से सती को भगवान शिव के बारे में अपमान भरे शब्द कहें। अपने पिता के मुंह से अपने पति शिव के बारे में अपमान भरे शब्द सुनकर माता सती को बहुत दुख हुआ और वह उसी समय यज्ञ में कूद गई और अपने प्राण त्याग दिए। जब भगवान शिव को इसके बारे में पता चला तो वह माता सती के जले हुए शरीर के साथ तांडव करने लगे। इसे देखकर तीनों लोक के लोग व्याकुल हो गए। इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के अलग-अलग टुकड़े कर दिए।यही टुकड़े जहाँ-जहाँ पड़े आज वो शक्ति पीठ के रूप में विराजमान है।
कथा मे मंदिर सचिव ब्रिजेश शर्मा और कथा के मुख्य यजमान प्रभात गुप्ता और उनकी धर्मपत्नी रेनू गुप्ता,
जय प्रकाश,राकेश मालवीय,दिलीप गुप्ता,तेज प्रकाश,अनिल चौहान, सुनील चौहान,दीपक अग्रवाल,
अंशुल गुप्ता,मानदाता,मोहित तिवारी,हरिनारायण त्रिपाठी,कुलदीप कुमार,अवधेश पाल
,मंगरे, रामललितगुप्ता,धर्मपाल,राजीव
,अलका शर्मा,संतोष चौहान,पुष्पा गुप्ता,सरला शर्मा,विभा गौतम,अनपूर्णा, राजकिशोरी मिश्रा,सुमन,मिनाक्षी कौशल्या,अंजू,मंजू,तनु चौहान,नीतू गुप्ता,कुसुम गैरा,मनसा मिश्रा,सुनीता चौहान और अनेको श्रोता गण कथा मे सम्मिलित हुए।
