मौहर्रम का चांद नजर आते ही ज्वालापुर में शुरू हुआ मजलिसों का दौर, मोहर्रम के महीने में 10 दिन इमाम हुसैन की याद में ग़म मनाया जाता है।

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हरिद्वार, 28 जून। मोहर्रम का चाँद नज़र आते ही उपनगरी ज्वालापुर में मजलिसों का सिलसिला शुरू हो गया है। अन्जुमन फ़रोग़ ए अज़ा के सोजन्य से हर साल मोहर्रम का चाँद नज़र आते ही इमाम बाड़ा अहबाब नगर में मजलिसों का आयोजन किया जाता है।
अन्जुमन फ़रोग़ ए अज़ा के अध्यक्ष हैदर नक़वी ने बताया कि मोहर्रम का महीना इस्लाम को मानने वालों लोगो के लिए एक ख़ास एहमियत रखता है। इस महीने में 10 दिन इमाम हुसैन की याद में ग़म मनाया जाता है। जिसमे मजलीस और मातम किया जाता है। हैदर नकवी ने बताया कि मोहर्रम के महीने में मोहम्मद साहब के नवासे मदीने से मोहर्रम की दूसरी तारीख को कर्बला आये थे। यहां यज़ीद नामक क्रूर शासक ने उनका रास्ता रोक लिया था। यज़ीद अपने क्रूर शासन को पूरे अरब में फैलाना चाहता था। लेकिन उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती थे मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन जो किसी भी हालत में यज़ीद के सामने झुकने को तैयार नही थे। जब इमाम हुसैन कर्बला पहुंचे तो वहां पानी का सिर्फ एक ज़रिया नहरे फुरात थी। जिसपर यज़ीद की फौज ने कब्ज़ा करके इमाम हुसैन और उनके काफ़िले पर पानी लेने के लिए रोक लगा दी थी। यज़ीद ने हर तरीके से इमाम हुसैन को झुकाने की कोशिश की। लेकिन इमाम हुसैन ने अपने नाना मोहम्मद साहब के सिखाये हुए सिद्धान्तो पर अटल रहे कि ज़ुल्म के आगे कभी सिर नही झुकना चाहिए और हर हाल में सब्र करना चाहिए। इमाम हुसैन के साथ मात्र 72 साथी थे। जबकि यज़ीद की लाखों की फौज इमाम हुसैन और उनके साथियो के सामने थी। इमाम हुसैन और उनके काफिले में शामिल 72 जांनिसारों ने शिद्दत की गर्मी में भूखे और प्यासे रहकर हर अज़ीयत को बर्दाश्त और सब्र किया। मौहर्रम माह की 10 तारीख़ को इमाम हुसैन और उनके साथ 72 लोगो को शहीद कर दिया गया। जिसमें इमाम हुसैन के मात्र 6 महीने के बेटे हज़रत अली असग़र के गले पर भी तीर मारकर शहीद कर दिया गया। हैदर नकवी ने बताया कि इमाम हुसैन और उनके साथियो की शहादतों को याद करते हुए मोहर्रम की 1 तारीख़ से 10 तारीख़ तक मजलिस और मातम करके ग़म मनाया जाता है।
मजलिस में संस्था के सेक्रेटरी फ़िरोज़ ज़ैदी, एहतेशाम अब्बास, अमन, जुनैद, मोहसिन, सज्जाद नक़वी, अनवार हुसैन, जाफ़र हुसैन, हादी हसन, मोहम्मद ज़मा, ग़ाज़ी, मोहम्मद, गोहर जाफरी, बिलाल रज़ा, अली रज़ा, दिलशाद नक़वी, ऐजाज़ नक़वी, शोएब नक़वी, इक़्तेदार नक़वी, ज़हूर हसन, अरशद, अमन, बिलाल, कार्ररार, अस्करी रज़ा, इक़बाल, रविश, बासित, हिलाल आदि मौजूद रहे।

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