हम घुसपैठिए नहीं हैं हम यहां पर मूल निवासी हैं यह कहना है उत्तराखंड में रहने वाले वन गुर्जरों का। आज प्रेस क्लब हरिद्वार में वन आश्रित समुदायों के खिलाफ विभिन्न समाचार पत्रों में प्रसारित खबरों को भ्रामक एवं तथ्य विहीन बताते हुए वनों में रहने वाले विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों ने खंडन करते हुए अपनी बात रखी और जांच की मांग की।
प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए वन गुर्जर ट्राइवल युवा संगठन के संयोजक मीर हमजा ने कहा कि
हाल ही में दो समाचार पत्रों द्वारा वनाश्रित समुदायों को लेकर प्रकाशित की गयी खबरें पूरी तरह भ्रामक और चिंताजनक हैं तथा इन समुदायों के परंपरागत अधिकार व बौद्धिक संपदा को प्रभावित करती हैं। इस तरह की खबरें मौजूदा कानूनों और वन संरक्षण के ढांचे का पुरी तरह से उलंघन करते हुए वन पर निर्भर समुदायों (वन गुज्जर, टोंगिया, घुमंतू, अर्ध-घुमंतू, आदीवासी, वन राजी, खत्ते वासी आदि) के अधिकारो व देश की जैवविविधता और वन्य जीवन के संरक्षण में इनकी महत्वपूर्ण भुमिका की बड़े पैमाने पर अनदेखी करती है। ऐसी खबरे वनों पर आश्रित समुदायों के अधिकारों के लिए बनें वनाधिकार कानून 2006 एवं वन संरक्षण से संबंधित कानूनों का उल्लंघन है।
इस तरह की दुर्भावना पूर्ण खबरें वन संरक्षण विरोधी है और हमारे पर्वतीय राज्य एवं समृद्ध देश की जैव विविधता, वन्य जीवन और जंगलों के सह अस्तित्व (Co- existence) और वन एवं पर्यावरण संवर्धन के लिए गंभीर ख़तरा है। इन खबरों से सामाजिक सदभाव कम होगा, अलगाव की स्थिति पैदा होगी साथ ही वनों पर निर्भर समुदायों में आर्थिक, सामाजिक असुरक्षा की भावना पैदा होगी तथा वनाश्रित समुदायों की पर्यावरणीय सांस्कृतिक परंपरा एवं अधिकारों को बाधा पहुंचेगी।
हमारे पर्वतीय राज्य उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में सभी वनाश्रित समुदायों का अहम योगदान रहा है तथा वन संपदा और जंगल के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। राज्य के गठन के समय से सभी समुदाय के लोग शांति पूर्वक रहते आ रहे हैं, इस तरह की अन्याय पूर्ण खबरें सामाजिक सोहार्द एवं सामाजिक एकता को खंडित करती है। उन्होंने कहा वह इन समाचारों का परियां खंडन करते हैं। पत्रकार वार्ता में वन जन श्रमजीवी यूनियन के सचिव मुन्नी लाल यादव और अमित राठी ने भी वन में रहने वाली जनजातीयों को वन संरक्षण में उपयोगी बताया उन्होंने कहा कि इन में रहने वाली सभी जातियों को जनजातीय दर्जा दिया जाना चाहिए। वक्ताओं ने यह भी कहा कि वनों में रहने वालों को घुसपैठिया नहीं कहा जाना चाहिए वह होता है जो अनाधिकार प्रवेश करता है जबकि इन्हें ब्रिटिश काल में ही वनों में रहने के परमिट मिले थे यह पशुपालन के साथ वन्य संसाधनों संरक्षण करते थे। पत्रकार वार्ता में मुख्य रूप से विपिन गैरोला मोहम्मद रफीक नजाकत इमामत अली मुस्तफा आदि उपस्थित थे।