शिव मंदिर समिति सेक्टर 1 के द्वारा आयोजित श्री राम कथा के सप्तम दिवस की कथा मे कथा व्यास महंत प्रदीप गोस्वामी जी महाराज जी ने कहा की राम वनवास की कथा बड़ी ही मार्मिक व भगवान के निकट जाने को प्रेरित करने वाली कथा है कथा का विस्तार करते हुये महाराज श्री ने कहा की पहले दिन भगवान राम,सीता ओर लक्ष्मण जी ने तमसा नदी के घाट पर विश्राम किया।तथा वहां पर निषाद राज गुह से भेट हुई।सूचना मिलने पर भीलो का सारा समाज व सभी नगर वासी श्री राम के दर्शन प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाया।बड़े-बड़े तपस्वी वह महात्माओं को भगवान के दर्शन ऐसे नहीं मिलते जिस प्रकार निषाद राज और उनके समाज के लोगों को दर्शन हुए।ये सब अपने पूर्व जन्म के कर्मों से ही संभव हो पाया था।अर्थात कथा यह कहती है कि हमें भी अपने जीवन में ऐसे सत्कर्म करने चाहिए जिससे हर जन्म मे भगवान की प्राप्ति हो जाए।
तब भगवान श्री राम निषाद राज गुह के साथ गंगा जी के तट पर आए ।
आज त्रिलोकीनाथ श्री राम जी निषाद राज् से गंगा पार करने के लिए उनकी नौका मांग रहे हैं ये निषाद राज के पूर्व जन्म का ही प्रताप था जो एक भगवान एक साधारण व गरीब केवट से स्वयं उनके पास चल कर आये और नाव मांगरहे है।
कथा कहती है कि पूर्व जन्म में ये केवट एक कछुवा था जो क्षीर सागर मे भगवान श्री राम (विष्णुजी)के पैर छूने का प्रयास कर रहा था लेकिन बार-बार प्रयास करने पर लक्ष्मण (शेषनाग) ने इसको उठा कर फेंक दिया तभी इसने प्रतिज्ञा की कि मैं आप के नाम का इतना स्मरण करूंगा कि आपको स्वयं मेरे पास सहायता मांगने आना पड़ेगा। तथा आपके पैर धोकर ही मैं आपकी सहायता करूंगा आज केवट ने ऐसा ही किया भगवान श्री राम के पैर धोकर अपने पूरे परिवार को चरणामृत पिलाकर उद्धार कर लिया। और श्री राम लक्ष्मण और माता सीता ने गंगा पार करने के लिए नाव मै विराजमान हुए ओर उतरते समय केवट ने भगवान से वचन लिया कि वापस आते समय भी मेरी ही नाव से पार जाना होगा। वनवास की लीला की व्याख्या करते हुए भगवान चित्रकूट में निवास करने लगे तब भरत जी पूरे परिवार के साथ आज चित्रकूट में आए तथा भगवान राम के सामने आकर दंडवत प्रणाम करके रोने लगे ओर कहा कि मेरा जीवन- भाई आपके लिए समर्पित है मैं आपके बिना नहीं रह सकता आपके बिना मैं अपने प्राणों का त्याग कर दूंगा मेरे लिए आप ही माता-पिता है मैं कसम खाकर कहता हूं कि यदि आप अयोध्या वापस नहीं गए तो आज के बाद मैं अपने जीवन का त्याग कर दूंगा।
कथा कहती है कि ऐसा भाव हर भाई को दूसरे भाई के साथ होना चाहिए क्योंकि भाई जैसा इस जीवन मे ओर कोई अनमोल वस्तु नहीं है। सीता माता से उनके पिता जनक जी वह माताजी मिलकर बहुत ही खुश हुए और कहा कि हे पुत्री आज तूने श्री राम के साथ वनवास आकर अर्थात अपने पति का साथ देकर दोनों कुल का ही उद्धार कर दिया।
भरत के बहुत विलाप करने पर और अयोध्या वापस ना जाने को हठ करने लगे तब ये सब देख गुरु वशिष्ठ जी के समझाने पर भरत जी श्री राम जी की खडाऊं ले कर व सभी लोग जो श्री राम जी से मिलने वन आये थे सभी लोगो ने अयोध्यापुरी की तरफ प्रस्थान किया।
कथा के मुख्य यजमान हरेंद्र मौर्य और ललिता मौर्य,ब्रिजेश शर्मा,जय प्रकाश,राकेश मालवीय,तेजप्रकाश,
अनिल चौहान,होशियार सिंह,विष्णु समाधिया,महेश तिवारी,मानदाता,
मोहित शर्मा,हरिनारायण त्रिपाठी,संजीव भारद्वाज,
एल.डी.मेहता,संतोष कुमार,अशोक सिंगल,सुरेश पाठक,उदभव् मुकेश,नीता सिंगल,लीना,अलका शर्मा,संतोष चौहान,सरलाशर्मा,
अनपूर्णा,राजकिशोरी मिश्रा,सुमन समाधिया,कौशल्या,रेनु,
बृजलेस(बबली)आदि लोग उपस्थित रहे।