उत्तरांचल विश्वविद्यालय ने 13–14 नवंबर 2025 को “जलवायु परिवर्तन और सतत विकास लक्ष्य” विषय पर दो दिवसीय आईसीएसएसआर प्रायोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ. कल्याण सिंह रावत, अध्यक्ष श्री जितेंद्र जोशी, उपाध्यक्ष सुश्री अंकिता जोशी और कुलपति प्रो. (डॉ.) धरम बुद्धि की उपस्थिति में हुआ।
श्री जितेंद्र जोशी ने संगोष्ठी के उद्देश्य की सराहना करते हुए कहा कि यह मंच शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, नीति-निर्माताओं और छात्रों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों पर विचार-विमर्श करने और भारतीय संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने की रणनीतियों को खोजने का अवसर प्रदान करता है।
डॉ. रावत ने श्रोताओं को पारिस्थितिक संरक्षण और सामुदायिक भागीदारी पर आधारित सतत प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने “भूजा”—जीवनदायी मिट्टी और भूमि संसाधनों की पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। अपने “मेती आंदोलन” के तहत वन और मिट्टी संरक्षण के प्रयासों का उल्लेख करते हुए उन्होंने गंगा को पुनर्जीवित करने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने सामूहिक प्रयासों, सतत नदी बेसिन प्रबंधन और प्रदूषण नियंत्रण की महत्ता बताई तथा छात्रों और शोधकर्ताओं से “ग्रीन एंबेसडर” बनने और नवाचार व जमीनी स्तर की कार्रवाई के माध्यम से पर्यावरण पुनर्स्थापन में योगदान देने का आग्रह किया।
विशिष्ट अतिथि प्रो. (डॉ.) धरम बुद्धि ने पारंपरिक पर्यावरणीय ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक नवाचारों के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। प्रो. (डॉ.) राजेश सिंह, निदेशक (अनुसंधान एवं नवाचार), ने विश्वविद्यालय के एसडीजी-संबंधित प्रकाशनों में योगदान को रेखांकित किया।
मुख्य वक्ताओं में प्रो. (डॉ.) पीयूष कुच्छल, डॉ. बृज मोहन शर्मा, श्री अशिष शर्मा, डॉ. डी.वी. गदरे, डॉ. एस.एस. सुथार, डॉ. हरी राज, डॉ. अजय सिंह और राजेश देओरारी शामिल रहे। उन्होंने जलवायु-स्मार्ट कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा, परिपत्र अर्थव्यवस्था, पर्यावरण नीति और सतत शहरी विकास जैसे विषयों पर विचार प्रस्तुत किए। सत्र अध्यक्षों ने प्रतिभागियों के प्रस्तुतिकरणों का सारांश प्रस्तुत कर समृद्ध शैक्षणिक चर्चा को प्रोत्साहित किया।
देशभर से आए शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों ने पत्र प्रस्तुत किए और वैश्विक जलवायु अनिश्चितताओं के बीच एसडीजी प्राप्त करने के नवाचारी दृष्टिकोणों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। संगोष्ठी का समापन प्रो. (डॉ.) अनीता गहलोत, संयुक्त निदेशक (अनुसंधान एवं नवाचार) द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिसमें आईसीएसएसआर और सभी प्रतिभागियों के मूल्यवान योगदान के लिए आभार व्यक्त किया गया। यह आयोजन सतत भविष्य के लिए जागरूकता और सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

